और कितना करीब लाउ में इससे ज़्यादा तुझे और कितना करीब लाऊँ मैं, कि तुझे दिल में रख कर भी मेरा दिल नहीं भरता। हक़ीक़त ना सही तुम ख़्वाब बन कर मिला करो, भटके मुसाफिर को चांदनी रात बनकर मिला करो। तुझे ख़्वाबों में पाकर दिल का क़रार खो ही जाता है, मैं जितना रोकूँ ख़ुद को तुझसे प्यार हो ही जाता है। अच्छा लगता हैं तेरा नाम मेरे नाम के साथ, जैसे कोई खूबसूरत जगह हो हसीन शाम के साथ। और करीब लाऊँ मैं तुझे कि, तुझे दिल में रख कर भी मेरा दिल नहीं भरता।
जरुरी तो नहीं जीने के लिए सहारा हो, जरुरी तो नहीं हम जिनके हैं वो हमारा हो, कुछ कश्तियाँ डूब भी जाया करती हैं, जरुरी तो नहीं हर कश्ती का किनारा हो। ༺ ☬$#@®♏@ J!☬༻
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें